नवरात्रि और व्रत वाला खाना
"नवरात्रि और व्रत वाला खाना"
👉 नवरात्रि हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार हैं। जिसे पूरे भारत में बड़े उत्साह से मनाया जाता हैं। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द हैं, जिसका अर्थ हैं "नौ रातें"। इन "नौ रातों" और दस दिनों में देवी के नौ रूपों की पूजा कि जाति है। दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है।
.
👉 देवी माँ और खाने का एक अटूट बंधन हैं। जो हमे पौराणिक कथाओं से पता चलता हैं। एक कथा के अनुसार जब पृथ्वी पर पानी और अन्न की कमी की वजह से हाहाकार हो रहा था। तब माता पार्वती ने अन्नपूर्णा माँ का रूप धारण कर के लोगों का भरण पोषण किया था। इस वजह से अन्नपूर्णा माता को "खाने की देवी" कहा जाता है और इसलिए ही घर की बहू को भी अन्नपूर्णा माँ का रूप माना जाता है।
👉 हमे पोराणिक कथाओं से ये भी पता चलता है कि माता सीता भी बहुत अच्छा खाना बनाती थी। अयोध्या मे "सीता की रसोई" नाम से एक जगह भी है। इसी तरह द्रौपदी भी अपने मेहमानों की आवभगत के लिए प्रसिद्ध है, यह कहा जाता है कि इनकी रसोई से कोई भी बिना खाए नहीं जाता था। यहां तक कि जब द्रौपदी पांडवों के साथ जंगल में थी तब उन्हे दुःख होता था कि वो किसी को खाना नहीं खिला सकती थी क्योंकि उनके पास कुछ नहीं था । इसी बात का फायदा उठा कर दुर्योधन ने पांडवों को नीचा दिखाने के लिए दुर्वासा ऋषि और कुछ अन्य ऋषियों को पंडावो के यहाँ भेजा, ऋषियों ने वहां जा कर द्रौपदी से खाना मांगा तब द्रौपदी ने विनम्रता से कहा कि आप सब पास के सरोवर में स्नान कर के पधारे तब तक मे खाना तैयार करती हूँ।ऋषियों के जाने के बाद द्रौपदी कुटिया के भीतर आकर रोने लगी क्योंकि कुटिया में कुछ भी खाने के लिए नहीं था। तभी वहां कृष्ण जी आगए, कृष्ण जी ने द्रौपदी से कहा कि कुछ है जो तुम ऋषियों को दे सकती हो द्रौपदी ने कृष्ण जी को बर्तन दिखाते हुए कहा कि सारा खाना मेने अपने पतियों को खिला दिया और जो बचा था वो मे खा गयी। तब कृष्ण जी ने बर्तन में पड़े मात्र एक चावल के दाने को उठा कर खा लिया कृष्ण जी के खाने से सभी ऋषियों का पैट भर गया और वो सरोवर से ही चले गए इस तरह कृष्ण जी ने द्रौपदी की लाज बचाई थी।
👉 नवरात्रि हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार हैं। जिसे पूरे भारत में बड़े उत्साह से मनाया जाता हैं। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द हैं, जिसका अर्थ हैं "नौ रातें"। इन "नौ रातों" और दस दिनों में देवी के नौ रूपों की पूजा कि जाति है। दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है।
.
👉 देवी माँ और खाने का एक अटूट बंधन हैं। जो हमे पौराणिक कथाओं से पता चलता हैं। एक कथा के अनुसार जब पृथ्वी पर पानी और अन्न की कमी की वजह से हाहाकार हो रहा था। तब माता पार्वती ने अन्नपूर्णा माँ का रूप धारण कर के लोगों का भरण पोषण किया था। इस वजह से अन्नपूर्णा माता को "खाने की देवी" कहा जाता है और इसलिए ही घर की बहू को भी अन्नपूर्णा माँ का रूप माना जाता है।
👉 हमे पोराणिक कथाओं से ये भी पता चलता है कि माता सीता भी बहुत अच्छा खाना बनाती थी। अयोध्या मे "सीता की रसोई" नाम से एक जगह भी है। इसी तरह द्रौपदी भी अपने मेहमानों की आवभगत के लिए प्रसिद्ध है, यह कहा जाता है कि इनकी रसोई से कोई भी बिना खाए नहीं जाता था। यहां तक कि जब द्रौपदी पांडवों के साथ जंगल में थी तब उन्हे दुःख होता था कि वो किसी को खाना नहीं खिला सकती थी क्योंकि उनके पास कुछ नहीं था । इसी बात का फायदा उठा कर दुर्योधन ने पांडवों को नीचा दिखाने के लिए दुर्वासा ऋषि और कुछ अन्य ऋषियों को पंडावो के यहाँ भेजा, ऋषियों ने वहां जा कर द्रौपदी से खाना मांगा तब द्रौपदी ने विनम्रता से कहा कि आप सब पास के सरोवर में स्नान कर के पधारे तब तक मे खाना तैयार करती हूँ।ऋषियों के जाने के बाद द्रौपदी कुटिया के भीतर आकर रोने लगी क्योंकि कुटिया में कुछ भी खाने के लिए नहीं था। तभी वहां कृष्ण जी आगए, कृष्ण जी ने द्रौपदी से कहा कि कुछ है जो तुम ऋषियों को दे सकती हो द्रौपदी ने कृष्ण जी को बर्तन दिखाते हुए कहा कि सारा खाना मेने अपने पतियों को खिला दिया और जो बचा था वो मे खा गयी। तब कृष्ण जी ने बर्तन में पड़े मात्र एक चावल के दाने को उठा कर खा लिया कृष्ण जी के खाने से सभी ऋषियों का पैट भर गया और वो सरोवर से ही चले गए इस तरह कृष्ण जी ने द्रौपदी की लाज बचाई थी।
तब कृष्ण जी ने द्रौपदी को अपनी समस्या के सामधान के लिए सूर्य देव की आराधना करने को कहा। द्रौपदी ने सूर्य देव की आराधना की और सूर्य देव ने प्रसन्न हो कर द्रौपदी को एक थाली दी, जिसे "द्रौपदी की थाली" कहा गया उसकी विशेषता यह थी कि उस थाली में हमेशा खाना रहेगा जब तक द्रौपदी नहीं खा लेती द्रौपदी के खाने के बाद खाना खत्म हो जाता था। द्रौपदी रोज़ सौ से ज्यादा लोगों को खाना खिलाती थी और फिर वो खाती थी।और भी बहुत कथाओं से हमे पता चलता है कि माता और अन्न का रिश्ता अनोखा है इसलिए ही तो हमे अपनी माँ के हाथ का खाना ज्यादा स्वादिष्ट लगता है।
.
👉नवरात्रि मे व्रत करने का कुछ अलग ही मज़ा आता है। घर मे बड़े से ले कर छोटे तक सब व्रत करते हैं। नवरात्रि मे व्रत करने वाले दो तरह के लोग होते है पहले वो जो माता मे आस्था की वजह से व्रत करते है दूसरे मेरे जैसे जो सिर्फ व्रत वाले स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए व्रत करते है। आज अष्टमी के पावन अवसर पर मे आप के लिए एक विशेष व्रत वाला स्वादिष्ट व्यंजन लाया हूँ जिसका नाम है "मूंगफली की बर्फी"। आए सीखे कैसे बनाती है मूंगफली की बर्फी।
.
👉"मूंगफली की बर्फी" बनाने की विधि -मूंगफली अपने आप में संपूर्ण आहार और सेहत का खजाना है। इसमे प्रोटीन की मात्रा अधिक पाई जाती है। यह मूल रूप से दक्षिण अमेरिका में उगाई जाती है। मूंगफली डायबीटीज, गैल्स्टोन का विकास, पैट के कैंसर आदि समस्याओं को रोकने में मदद करता है। मूंगफली के सेवन से याददाश्त बड़ती हैं। और जब इतनी अच्छी चीज़ मीठे के रूप में मिले तो किसे पसंद नहीं होगी।
.
-आवश्यक सामग्री -
1. मूंगफली - 1/2 किलो
2. तेल - 2 चम्मच
3. चीनी - 200 ग्राम
4. इलायची पाउडर - 1 चम्मच
1. मूंगफली - 1/2 किलो
2. तेल - 2 चम्मच
3. चीनी - 200 ग्राम
4. इलायची पाउडर - 1 चम्मच
.
- बनाने की विधि -
1. एक कड़ाई में मूंगफली लेकर भून लें, ठंडा होने पर मूंगफली का छिलका निकाल लेंवे।
2. छिली हुई मूंगफली को दरदारा पीस लेंवे।
3. एक कड़ाई में चीनी और एक कप पानी डालकर चाशनी बनाने के लिए रख दे, डेड तार की चाशनी बना लेंवे।
4. मूंगफली और इलायची पाउडर डालकर लगातार चलाते रहे, अच्छे से मिलाने के बाद गैस बंद कर देंवे।
5. एक थाली में तेल लगा कर मिश्रण को फैला देंवे.।
6. ठंडा होने पर बर्फी के आकार में काट लेंवे।
किसी डिब्बे में बर्फी के टुकड़े भरकर रख दे और 15-20 दिनों तक बर्फी के स्वाद का मज़ा लें।
👉 सुझाव - चाशनी पतली होने पर बर्फी अच्छी तरह जमती नहीं और चाशनी के ज्यादा कड़क होने पर बर्फी सख्त हो जाती है तो चाशनी बनाते समय ध्यान दे।
.
AT की कलम से-
1. एक कड़ाई में मूंगफली लेकर भून लें, ठंडा होने पर मूंगफली का छिलका निकाल लेंवे।
2. छिली हुई मूंगफली को दरदारा पीस लेंवे।
3. एक कड़ाई में चीनी और एक कप पानी डालकर चाशनी बनाने के लिए रख दे, डेड तार की चाशनी बना लेंवे।
4. मूंगफली और इलायची पाउडर डालकर लगातार चलाते रहे, अच्छे से मिलाने के बाद गैस बंद कर देंवे।
5. एक थाली में तेल लगा कर मिश्रण को फैला देंवे.।
6. ठंडा होने पर बर्फी के आकार में काट लेंवे।
किसी डिब्बे में बर्फी के टुकड़े भरकर रख दे और 15-20 दिनों तक बर्फी के स्वाद का मज़ा लें।
👉 सुझाव - चाशनी पतली होने पर बर्फी अच्छी तरह जमती नहीं और चाशनी के ज्यादा कड़क होने पर बर्फी सख्त हो जाती है तो चाशनी बनाते समय ध्यान दे।
.
AT की कलम से-
Comments
Post a Comment